Ek Khoj (Poem)
किसीसे मन की बात कहकर भी; तन्हाई का इक इक पल सताता है| भीड़ के बीच रहकर भी; मुझे अकेला रहना आता है|
रहता है वो किसमे, कैसे, कहाँ; कौन जाने प्यार कहाँ बस्ता है? क्या अकेलेपन से भरे जहाँ मे; वो लूका छिप्पि खेल कर हस्ता है?
ढूंढता हूँ उसे हर जगह; जला धूप मैं, देखे हर साए| ना जान पाया मई वो वजह; क्यू वह मुझे ऐसे सताए|
मिला वो कहीं पल दो पल; पूछना चाहा उसे सवाल कहीं| जवाब मिले कोई, मिले कुछ हल, पर खोज मेरी रही वहीं के वहीं|
जो लफ्ज़ उसने कहे; वह सिर्फ़ मुझे घाव दे गये| जो लफ्ज़ उसने ना कहे; वह मेरी जान ले गये!
– Funadrius